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2.1 अवपरमाणिवक कणों की खोज की संखेधना के बारे में और जानकारो प्राप्त हुई। इन परिणामो की वर्ग करने से पहले आधेशित कणों के ब्यवहार के बारे में हमे या मूल निषम ध्यान में रखना होगा कि समान आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित तथा विपरीत आवेश एक-दुसरे को अक्षिंत्र करते है। 2.1.1 इलेक्ट्रॉन की खोज सन 1830 में माइकेल फैराडे ने दर्शाया कि यदि किसी वितषन में विद्युत् प्रवाहित की जातो है, तो इलेक्ट्रोड़ों पर रासायनिक अभिक्रियाएँ होती हैं, जिनके परिणामस्वर्प इलेक्ट्रोडों पर पदार्थ का विसर्जन और निक्षेपण (deposition) होता है। उसने कुछ नियम बताए, जिनके विषय में आप 12 वी कक्षा में पडेंगे। इन परिणामों से विद्युत् की कणोय प्रकृति के बारे में पता चलता है। 1850 के मध्य में अनेक बैक्षानिक, विशेषकर फैराडे ने आंशिक रूप से निर्वातित नलिकाओं, जिन्हें कैथोड किरण नलिकाएँ कहा जाता है, में विद्युत्विसर्जन का अध्ययन आरंभ किया। इसे चित्र 2.1 (क) में दर्शाया गया है। कैयोड किरण नलिका काँच की बनी होती है, जिसमें धातु के दो पतले टुकड़े, जिन्हें इलेक्ट्रोड कहते हैं, सोल किए हुए होते है। गैसो में विद्युत्विसर्जन को सिफ निम्न दाब एवं उच्च विभव पर प्रेक्षित किया जा सकता है। काँच की नलिकाओं में विभिन्न गैसों के दाब को निव्वांतन द्वारा नियत्रित किया गया। इस प्रकार जब इलेक्ट्रोडों पर उच्च वोल्टता लागू की गई, तो नलिका में कणों की धारा के द्वारा ऋणात्मक इलेक्ट्रोड (कैथोड) से धनाल्मक इलेक्ट्रोड (ऐनोड) की तरफ विद्युत् का प्रवाह आरंभ हो गया। इनको कैथोड किरणें अथवा कैथोड किरण कण कहते हैं। चित्र 2.1 (क) एक कैथोड किरण विसर्जन नलिका कैयोड से ऐनोह उक विदुतधारा के प्रवाह की अतिरिक्त जाँ के लिए पेनोड में fि: तथा ऐनोड के पौडे नली पर स्कुरदौप्त पदार्य (fिक सल्फाइड) का लेप किया जाता है। जब ये किरणें ऐनोड के छिद्र में से गुजरकर जिक सल्फाइड को परत पर टकरती हैं तथा वहां एक चमकोला चिद्ध बन जाता है [धित्र 2.1 (ख)]। इस प्रयोग के परिणाम का साराश निम्नलिखित है- चित्र 2.1 (ख) सहित्र एनोड्युक्त एक कैधोड-किरण विसर्जन नलिका (i) कैथोड किरणें (cathode rayंs) कैथोड से आरंभ होकर ऐनोड की ओर गमन करती हैं। (ii) ये किरणें स्वयं दिखाई नहीं देतीं, परंतु इनके व्यवहार को गैसों तथा कुछ निश्चित प्रकार के पदार्थों (स्फुरदीप्त तथा प्रतिदीप्त) की उपस्थिति में देखा जा सकता है। ये पदार्थ इन किरणों के टकराने से चमकते हैं। टेलीवीजन चित्र नलिका कैथोड किरण नलिका होती है। टी वी. पदी स्कुरदीप्त एवं प्रतिदीप्त पदाथों से लेपित होता है जिस पर चित्र प्रतिदीप्त होते हैं। (iii) विद्युत् और चुंबकीय क्षेत्रों की अनुपस्थिति में ये किरणें सोधी दिशा में गमन करती हैं। (iv) विद्युत् और चुंबकोय क्षेत्रों की उपस्थिति में कैथोड किरणों का व्यवहार ऋणावेशित कणों के अपेक्षित व्यवहार के समान होता है, जो यह सिद्ध करता है वि कैथोड किरणों में ऋणावेषित कण होते हैं. जिन इलेक्टूॉन कहते हैं। (v) कैथोड-किरणों (इलेक्ट्रॉन) के लक्षण कैथोड किर नलिका के इलेक्ट्रोडों के पदार्थ एवं उसमें उपस्थित गै की प्रकृति पर निर्भर नहीं करते। उपरोक्त परिणामों से यह निष्कर्ष निकलता है इलेक्ट्रॉन सभी परमाणुओं के मूल घटक होते हैं।
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Question Text | 2.1 अवपरमाणिवक कणों की खोज की संखेधना के बारे में और जानकारो प्राप्त हुई। इन परिणामो की वर्ग करने से पहले आधेशित कणों के ब्यवहार के बारे में हमे या मूल निषम ध्यान में रखना होगा कि समान आवेश एक-दूसरे को प्रतिकर्षित तथा विपरीत आवेश एक-दुसरे को अक्षिंत्र करते है।
2.1.1 इलेक्ट्रॉन की खोज
सन 1830 में माइकेल फैराडे ने दर्शाया कि यदि किसी वितषन में विद्युत् प्रवाहित की जातो है, तो इलेक्ट्रोड़ों पर रासायनिक अभिक्रियाएँ होती हैं, जिनके परिणामस्वर्प इलेक्ट्रोडों पर पदार्थ का विसर्जन और निक्षेपण (deposition) होता है। उसने कुछ नियम बताए, जिनके विषय में आप 12 वी कक्षा में पडेंगे। इन परिणामों से विद्युत् की कणोय प्रकृति के बारे में पता चलता है।
1850 के मध्य में अनेक बैक्षानिक, विशेषकर फैराडे ने आंशिक रूप से निर्वातित नलिकाओं, जिन्हें कैथोड किरण नलिकाएँ कहा जाता है, में विद्युत्विसर्जन का अध्ययन आरंभ किया। इसे चित्र 2.1 (क) में दर्शाया गया है। कैयोड किरण नलिका काँच की बनी होती है, जिसमें धातु के दो पतले टुकड़े, जिन्हें इलेक्ट्रोड कहते हैं, सोल किए हुए होते है। गैसो में विद्युत्विसर्जन को सिफ निम्न दाब एवं उच्च विभव पर प्रेक्षित किया जा सकता है। काँच की नलिकाओं में विभिन्न गैसों के दाब को निव्वांतन द्वारा नियत्रित किया गया। इस प्रकार जब इलेक्ट्रोडों पर उच्च वोल्टता लागू की गई, तो नलिका में कणों की धारा के द्वारा ऋणात्मक इलेक्ट्रोड (कैथोड) से धनाल्मक इलेक्ट्रोड (ऐनोड) की तरफ विद्युत् का प्रवाह आरंभ हो गया। इनको कैथोड किरणें अथवा कैथोड किरण कण कहते हैं।
चित्र 2.1 (क) एक कैथोड किरण विसर्जन नलिका
कैयोड से ऐनोह उक विदुतधारा के प्रवाह की अतिरिक्त जाँ के लिए पेनोड में fि: तथा ऐनोड के पौडे नली पर स्कुरदौप्त पदार्य (fिक सल्फाइड) का लेप किया जाता है। जब ये किरणें ऐनोड के छिद्र में से गुजरकर जिक सल्फाइड को परत पर टकरती हैं तथा वहां एक चमकोला चिद्ध बन जाता है [धित्र 2.1 (ख)]। इस प्रयोग के परिणाम का साराश निम्नलिखित है-
चित्र 2.1 (ख) सहित्र एनोड्युक्त एक कैधोड-किरण विसर्जन नलिका
(i) कैथोड किरणें (cathode rayंs) कैथोड से आरंभ होकर ऐनोड की ओर गमन करती हैं।
(ii) ये किरणें स्वयं दिखाई नहीं देतीं, परंतु इनके व्यवहार को गैसों तथा कुछ निश्चित प्रकार के पदार्थों (स्फुरदीप्त तथा प्रतिदीप्त) की उपस्थिति में देखा जा सकता है। ये पदार्थ इन किरणों के टकराने से चमकते हैं। टेलीवीजन चित्र नलिका कैथोड किरण नलिका होती है। टी वी. पदी स्कुरदीप्त एवं प्रतिदीप्त पदाथों से लेपित होता है जिस पर चित्र प्रतिदीप्त होते हैं।
(iii) विद्युत् और चुंबकीय क्षेत्रों की अनुपस्थिति में ये किरणें सोधी दिशा में गमन करती हैं।
(iv) विद्युत् और चुंबकोय क्षेत्रों की उपस्थिति में कैथोड किरणों का व्यवहार ऋणावेशित कणों के अपेक्षित व्यवहार के समान होता है, जो यह सिद्ध करता है वि कैथोड किरणों में ऋणावेषित कण होते हैं. जिन इलेक्टूॉन कहते हैं।
(v) कैथोड-किरणों (इलेक्ट्रॉन) के लक्षण कैथोड किर नलिका के इलेक्ट्रोडों के पदार्थ एवं उसमें उपस्थित गै की प्रकृति पर निर्भर नहीं करते।
उपरोक्त परिणामों से यह निष्कर्ष निकलता है इलेक्ट्रॉन सभी परमाणुओं के मूल घटक होते हैं। |
Updated On | Jun 20, 2023 |
Topic | Atomic Structure |
Subject | Chemistry |
Class | Class 11 |
Answer Type | Video solution: 1 |
Upvotes | 52 |
Avg. Video Duration | 4 min |